
सिंगापुर
भारत के जूनियर तीरंदाजों के पास एशिया कप के दूसरे चरण में सात स्वर्ण पदक जीतने का मौका था लेकिन पांच फाइनल में हारने के कारण उन्हें अधिकतर स्पर्धा में रजत पदक से संतोष करना पड़ा। इस तरह से भारत ने प्रतियोगिता में दो स्वर्ण, छह रजत और एक कांस्य सहित कुल नौ पदक जीतकर अपने अभियान का अंत किया। रिकर्व और कम्पाउंड स्पर्धाओं के 10 में से सात फाइनल में पहुंचने के बावजूद भारतीय तीरंदाज केवल दो बार पोडियम पर शीर्ष पर रहे।
भारतीय खिलाड़ी जिस तरह से अपने से कम रैंकिंग वाले खिलाड़ियों से हारे वह वास्तव में चिंताजनक है। हमेशा की तरह ओलंपिक स्पर्धा के रिकर्व वर्ग में नतीजे विशेष रूप से चिंताजनक रहे जिसमें भारत एक भी स्वर्ण जीतने में असफल रहा। असल में टीम स्पर्धाओं में दो रजत पदकों के अलावा रिकर्व तीरंदाज खाली हाथ लौटे। क्वालिफिकेशन राउंड के बाद शीर्ष वरीयता प्राप्त पुरुष टीम फाइनल में जापान के खिलाफ आसानी से हार गई। विष्णु चौधरी, पारस हुड्डा और जुयेल सरकार तीन में से दो सेटों में 50 का आंकड़ा छूने में असफल रहे और सीधे सेटों में 6-0 से हार गए।
रिकर्व मिश्रित टीम फाइनल में भी यही कहानी रही। चौधरी और वैष्णवी पवार की चौथी वरीयता प्राप्त टीम इंडोनेशिया के खिलाफ पूरे मुकाबले में गलतियां करती रही। यदि रिकर्व वर्ग के परिणाम निराशाजनक थे, तो कम्पाउंड वर्ग ने कुछ राहत प्रदान की। भारत ने अपने दोनों स्वर्ण पदक इस वर्ग में जीते। शीर्ष वरीयता प्राप्त कुशल दलाल ने पुरुष व्यक्तिगत फाइनल में 22वीं वरीयता प्राप्त ऑस्ट्रेलिया के जोशुआ मैनन को 149-143 से हराकर अपनी प्रतिष्ठा को सही साबित किया। भारत को इस स्पर्धा में कांस्य पदक भी मिला, जिसमें 10वें वरीय सचिन चेची ने चौथे वरीय हिमू बछाड़ को कड़े मुकाबले में 148-146 से हराया।
महिलाओं की स्पर्धा में स्वर्ण पदक सुनिश्चित था क्योंकि इसके फाइनल में मुकाबला जो भारतीय खिलाड़ियों के बीच था जिसमें दूसरी वरीयता प्राप्त तेजल साल्वे ने पहली वरीय शानमुखी नागा साई बुड्डे को 146-144 से हराया। शीर्ष वरीयता प्राप्त पुरुष कम्पाउंड टीम को तीसरी वरीयता प्राप्त कजाकिस्तान ने 231-235 से हरा दिया। महिलाओं की कम्पाउंड टीम 232-232 से बराबरी पर रहने के बाद निचली रैंकिंग वाली मलेशिया से शूट-ऑफ में हार गई। शानमुखी और दलाल की मिश्रित कंपाउंड टीम को कजाकिस्तान से शूट-ऑफ में हार का सामना करना पड़ा।